साहित्यिक प्रवृत्तियां

श्रमणोपासक

यह हिंदी पाक्षिक संघ का मुखपत्र व प्रतिनिधिक विचार वाहिनी है जो संघ स्थापना के समकालीन विगत 59 वर्षों से अविरल प्रकाशित हो रहा है। पत्रिका में आचार्य भगवंतों के दिव्य प्रवचन व अमृतवाणी, जैन धर्म व दर्शन संदर्भित लेख, संघ संबंधी सूचना तथा अन्य नैतिक मूल्य–आधारित, उत्प्ररेक व प्रेरणास्पद स्तम्भ प्रस्तुतियों की समाविष्टि होती है। अपने रुचिपूर्ण चित्तरंजन विषय–वस्तु के कारण ‘श्रमणोपासक’ जनप्रिय तो है ही, साथ ही विवेकपूर्ण पाठक इसे समाज में जागृति व परिवर्तन के उद्दीपक के स्वरूप में आंकते हैं। वर्तमान में ‘श्रमणोपासक’ के लगभग 25000 आजीवन अभिदाता सदस्य हैं।

साधुमार्गी पब्लिकेशन

संघ द्वारा जैन धर्म, दर्शन, आगम, कथा एवं प्रवचन से संदर्भित साहित्य का प्रकाशन किया जाता है। सत्साहित्य का प्रकाशन संघ की महत्वपूर्ण प्रवृत्ति है।

आगम, अहिंसा–समता एवं प्राकृत संस्थान

जैन आगमों में निरुपित तत्व ज्ञान को कंठस्थ करने तथा उन पर चिंतन, मनन, अन्वेषण करने से शास्त्रों के गहन विषयों का भी सरलता से ज्ञान प्राप्त हो जाता है। तत्व प्रकाशन समिति द्वारा तत्व ज्ञान संबंधी 20 पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है।