पिता का नाम : : राजा सिद्धार्थ |
माता का नाम : रानी त्रिशला |
भाई का नाम : नन्दीवर्धन |
बहन का नाम : सुदर्शना |
जन्म स्थल : क्षत्रिय कुण्ड |
जन्म देश : पूर्व |
लांछन : सिंह |
यक्ष : मातंग (ब्रह्म शान्ति) |
यक्षिणी : सिद्धायिका |
शरीर की ऊँचाई : 7 हाथ |
वर्ण : स्वर्ण-पीला (कांचन) |
च्यवन कल्याणक : आश्विन सुदी 6 |
च्यवन नक्षत्र : उत्तराफाल्गुनी |
च्यवन राशि : कान्य (कन्या) |
पूर्व भव नगरी : अहिछत्रा |
कौनसे देवलोक से च्यवन : प्राणत |
तीर्थंकर नाम कर्म का भव : नंदन |
पूर्व भव नाम : नंदन |
पूर्व भव गुरु : पोट्टिलक |
पूर्व भव स्वर्ग : प्राणत देवलोक |
भव संख्या : 27 (सत्तावीस) |
गर्भकाल स्थिति : 9 माह साढे सात दिन |
जन्म कल्याण : चैत्र शुक्ल त्रयोदशी (30 मार्च 599 ई.पू.) |
बाल्यावस्था का नाम : वर्धमान, वीर, ज्ञातपुत्र, महावीर |
जन्म नक्षत्र : उत्तरा फाल्गुनी |
जन्म राशि : कन्या |
गण : मानव |
वंश : इक्ष्वाकु |
गोत्र : काश्यप |
योनि : महिष |
कुमार अवस्था : 30 वर्ष |
पत्नी का नाम : यशोदा |
पुत्री का नाम : प्रियदर्शना |
जंवाई का नाम : जमाली |
पिता की गति : माहेन्द्र देवलोक |
माता की गति : माहेन्द्र देवलोक |
दीक्षा नक्षत्र : उत्तरा फाल्गुनी |
दीक्षा राशि : कन्या |
दीक्षा नगरी : क्षत्रिय कुण्ड |
दीक्षा भूमि : ज्ञातखण्ड वन |
दीक्षा वृक्ष : अशोक वृक्ष |
दीक्षा दाता : स्वयं |
दीक्षा शिविका : चन्द्रप्रभा |
दीक्षा का समय : मध्यान्ह (दोपहर) |
दीक्षा के समय तप : छट्ठ (बेला) |
दीक्षा लेते ही ज्ञान : चौथा मनः पर्यय |
लोच : पंच मुष्टि |
दीक्षा के बाद पारणे का द्रव्य : परमान्न-खीर |
प्रथम पारणे की नगरी : कोल्लाक |
प्रथम आहार बहराने वाले : बहुलद्विज |
साधना अवधि : साढ़े बारह वर्ष |
प्रथम व अन्तिम उपसर्ग : ग्वाले द्वारा |
केवलज्ञान कल्याण : वैशाख सुदी 10 |
केवलज्ञान नक्षत्र : उत्तरा फाल्गुनी |
केवलज्ञान राशि : कन्या |
केवलज्ञान नगरी : जंम्तिका नगरी बाहर |
केवलज्ञान भूमि : ऋजुवालिका नदी का तट |
केवलज्ञान के समय तप : छट्ठ (बेला) |
उत्कृष्ट तप : छः माह |
केवलज्ञान वृक्ष : शाल वृक्ष |
ज्ञान वृक्ष की ऊँचाई : 21 धनुष |
समवसरण की रचना : 4 कोश (1 योजन) |
प्रथम देशना का विषय : यति धर्म, गृहस्थ धर्म, गणधर वाद |
गणधर की संख्या : 11 गणधर |
प्रथम शिष्य : इन्द्रभूति गौतम |
प्रथम गणधर : इन्द्रभूति |
प्रथम शिष्या : चन्दना (चन्दनबाला) |
मुख्य भक्त राजा : श्रेणिक |
केवलज्ञानी : सात सौ (700) |
मनः पर्ययज्ञानी : पाँच सौ (500) |
अवधिज्ञानी : तेरह सौ (1300) |
चौदह पूर्व धारी : तीन सौ (300) |
वैक्रिय लब्धिधारी : सात सौ (700) |
साधुओं की संख्या : चौदह हजार (14000) |
साध्वियों की संख्या : छत्तीस हजार (36000) |
वादी मुनि : चौदह सौ (1400) |
श्रावकों की संख्या : 1 लाख 59 हजार (159000) |
श्राविकाओं की संख्या : 3 लाख 18 हजार (318000) |
चारित्र : पाँच (सामायिक, छझोपस्थापनिक, परिहार, विशुद्धि सूक्ष्म सम्पराय, यथाख्यात) |
सामायिक : चार (सम्यक्त्व, श्रुत, देशविरति, सर्वविरति) |
प्रतिक्रमण : पाँच (राइय, देवसिय, पक्खी, चौमासी, सम्वत्सर) |
साढ़े बारह वर्ष में आहार ग्रहण दिन: 349 दिन |
तेरह अभिग्रह का पारणा : कौशाम्बी में चन्दनबाला के हाथों |
छद्मस्थकाल में तप : 14 प्रकार के तप |
निर्वाण कल्याणक : कार्तिक कृष्ण अमावस्या |
निर्वाण कल्याणक नक्षत्र |