सिरीवाल प्रवृत्ति
राजस्थान की जनजाति बावरी समाज जो हिंसक गतिविधियों में लिप्त था। शास्त्रज्ञ, तरूण तपस्वी, प्रशांतमना आचार्य प्रवर श्री 1008 श्री रामलालजी म.सा. के पावन उद्बोधन ने उनके जीवन का रूपानतंरण कर उन्हें एक नई दिशा प्रदान की। मेवाड क्षेत्र के इस बावरी जाति के लोगों ने पूज्य गुरूदेव की सत्प्रेरणा से शाकाहार, व्यसनमुक्ति की ओर कदम बढाकर समाज के समक्ष एक उत्कृष्ट उदाहरण रखा है। संघ द्वारा इन सिरीवाल बंधुओं के जीवन स्तर को सुधारने के लिये अनेक योजनाएं निरन्तर गतिशील है। समय-समय पर इन क्षेत्रों में संघ पदाधिकारियों के सघन प्रवासों शिक्षण शिविरों, धार्मिक पाठशालाओं से धर्म की अलख जल रही है। जिससे संस्कार क्राति को एक नया संबल प्राप्त हुआ है।