चौदह नियम
सचित दव्व बिराई पण्णी, तांबूल वत्थ कुसुमेसु।
वाहण सयण विलेवण, बंभदिसि णहाण भत्तेसु।।
( 1 ) सचित्त- सचित्त वस्तुएँ जो भी खाने-पीने में आमें उनकी जाति की संख्या, जैसे-हरी तरकारी, सौंफ, इलायची, कच्ची ककड़ी, पान, अनार, कच्चा पानी इत्यादि ।
सचित्त वस्तु अग्नि से अथवा अन्य किसी शस्त्र से परिणत हो जाने के बाद अचित्त हो जाती है। अगर पूर्ण रूप से शस्त्र परिणत न हुई तो उसे भी सचित्त में ही गिनना। मिश्रण की हुई वस्तु, जैसे-पान आदि में जितनी सचित्त वस्तुएँ हों वे सब अलग-अलग गिनती करना ।
ध्यान में लेने योग्य विशेष बातें-
1. बीज निकाले बिना सधी-फलों के पणे (जूस) सचित्त में गिनना।
2. धूंगारी हुई वनस्पतियाँ तथा सीके हुए भूट्टे (अधूरे पकने से) सचित्त गिनना ।
3. पके फलों का रस निकालकर व छानकर रखा हो तो कुछ समय बाद अचित्त गिनना ।
4. साफ किए हुए चावल को छोड़कर प्राय; सभी अनाज सचित्त है। पीसने या आग्नि पर सीजने से अचित्त होवे परन्तु भीगने से नहीं ।
5. काले नमक को छोड़कर सधी नमक सचित्त। उबालकर बनाये हों या गर्स किये हों तो अचित्तः पीसने पर तो सचित्त ही रहता है।
6. धनिया के दो टुकड़े हो जामें तो भी सचित्त। पीसे हों तो अचित्त।
7. किसी गीली चीज में नमक जीरा आदि ऊपर से डाले हों तो आधे घण्टे सचित्त गिनना और सुखी चीज पर डाले हों तो सचित्त ही रहते हैं।
8. मेवे सचित्त। टुकड़े होने पर या उबलने-सेकने पर अचित्त।
( 2 ) द्रव्य- जितनी वस्तुएँ दिनधर में खाने-पीने में आमें उनकी जाति की सरयदि करना अर्थात् तैयार वस्तु की एक जाति गिन लेना, फिर चाहे उसे किसी भी तरह खाने की प्रवृत्ति हो अथवा दूसरा तरीका यह भी है कि जितनी तरह से स्वाद प्रलट कर संयोग सिलाकर खाया जाये उसको ध्यान में रखकर गिनना । तैयार वस्तु गिनने का तरीका सरल है जैसे-दाल, खीर आदि।
( 3 ) विगय- महाविगय (मक्खन, शहद) का त्याग करना एवं पाँच विगयों ( दूध, दही, घी, तेल, मीठा- शक्कर गुड़ आदि) में से कम से कम एक का त्याग करना । एक का भी त्याग न हो सके तो सबकी मर्यादा कर लेना।
चाय, रसगुल्ला, मावे की चक्की में दो विगय गिनना। गुलाब जामुन में तीन विगय गिनना। दही में ये मक्खन नहीं निकाला हो तब तक दही को विगय गिनना। जैसे – रायता, मट्ठा आदि। तेल की कोई भी वस्तु बनी हो तो उसमें तेल का विगय गिनना, जैसे-साग, अचार तली चीजें आदि। शक्कर, गुड़ और इनसे बनी चीजें मीठा के विगय में गिनना, परन्तु जो चीजें शक्कर गुड़ के बिना स्वाभाविक मीठी हों तो विगय में नहीं गिनना, जैसे- फल, मेवे, खजूर आदि। साग व कड़ी में दही का आगार।
( 4 ) पन्नी- पांव में पहनने के जूते चप्पल आदि की जाति चमड़े रबड़ आदि की मर्यादा तथा जोड़ी नग की मर्यादा करना । स्पर्श आदि का या भूल आदि का आगार। गुम हो जाने से दूसरी जोड़ी पहननी पड़े तो आगार रखा जा सकता है। घर के सभी जूते – चप्पलों के उपरात भी त्याग किया जा सकता है ।
( 5 ) ताम्बूल- मुखवास की चीजें जैसे-सुपारी, इलायची, सौंफ, पान, चूर्ण इत्यादि की जाति की मर्यादा करना । मिश्र वस्तु जैसे- पान आदि में एक जाति गिन सकते हैं और अलग-अलग भी ।
( 6 ) वस्त्र- पहनने के वस्त्र और काम में लेने के वस्त्रों की गिनती करना, जैसे- कमीज, पेंट, रुमाल, तौलिया, मुहपत्ती, दुपट्टा आदि ।
( 7 ) कुसुम- शौक से सूंघने के पदार्थों की मर्यादा करना, जैसे-तेल, इत्र आदि। किसी चीज को परीक्षा हेतु सूंघा जाये, जैसे- घी, फल आदि उसका आगार। भूल या दवा का आगार।
( 8 ) वाहन- सधी प्रकार की सवारी की मर्यादा करना। जाति तथा नग, जैसे- साइकिल, तांगा, स्कूटर, रिक्शा, मोटर, रेल आदि। विशेष परिस्थिति में पाँच नवकार मंत्र के ध्यान से आगार। हवाई जहाज का सामान्य रूप से त्याग। विशेष परिस्थिति में पाँच नवकार मंत्र से आगार।
( 9 ) शयन- बिछाने तथा ओढ़ने के गद्दे, तकिये, चादर, रजाई, पलंग, कुर्सी आदि फर्नीचर की मर्यादा नग में करना । इसमें स्पर्श या चलने में पांव नीचे आ जाये उसका आगार तथा जिनकी गिनती संभव नहीं हो ऐसे प्रसंगों का भी आगार। एक जगह जाने तथा बैठने का एक शयन गिनने का कायदा भी किया जा सकता है, जैसे-गलीचा, गद्दे, चादर, दरी आदि एक साथ में हों तो उस पर बैठने का एक गिनना । जैसी भी सुविधा एवं सरलता हो उसके अनुसार सदा के लिए अपना कायदा बनाकर मर्यादा धारण करना ।
( 10 ) विलेपन- जितनी भी लेप व श्रृंगार की चीजें शरीर पर लगाई जामें उनकी जाति की संख्या में मर्यादा करना । बिना उपयोग भूल-चूक या दवा का आगार। तेल, पीठी, साबुन, चंदन आदि का लेप, इत्र, वैसलीन, पाउडर, क्रीम, कुमकुम, हींगलु, मेहंदी आदि। भोजन के बाद चिकने हाथ या अन्य चीज से हाथ भर जाएँ इसे शरीर पर फ़ेरने की आदत हो तो उसका भी आगार रखा जा सकता है ।
( 11 ) ब्रहाचर्य- सम्पूर्ण दिन-रात के लिए कुशील का त्याग या मर्यादा । सात प्रहर या छः प्रहर या दिनभर तक त्याग करना अथवा घड़ी के समय से भी मर्यादा कर सकते हैं।
( 12 ) दिशा- अपने स्थान से चारों दिशाओं में स्वाभाविक कितने किलोमीटर या मील से आगे आवागमन नहीं करना उसकी मर्यादा करना। ऊँची दिशा में पहाड़ पर अथवा तीन-चार मंजिल के मकान पर जाना हो तो उसकी मर्यादा फीट में। नीची दिशा (Underground) आदि में जाना हो तो उसकी मर्यादा मीटर में अथवा फीट में अलग कर लेना चाहिए, जैसे- चारों ओर दिशा में चार किलोमीटर के उपरान्त जाने का त्याग और विशेष परिस्थितियों में पाँच नवकार मंत्र के आगार से मर्यादा करना । स्वाभाविक बस्ती की जमीन ऊँची-नीची हो उसका आगार। तार, चिट्ठी व टेलीफोन स्वयं करने की मर्यादा किलोमीटर में या पुरे भारतवर्ष या अमुक-अमुक देश ।
( 13 ) स्नान- पुरे शरीर पर पानी डालकर स्नान करना ‘बड़ी स्नान’ है । पूरे शरीर को गीले कपड़े से पौछना ‘मध्यम स्नान’ है और हाथ पैर मुह धोना ‘छोटी स्नान’ है । इसकी मर्यादा करना । बड़ी स्नान, मध्यम स्नान, छोटी स्नान और स्नान के कुल पानी की मर्यादा लीटर अथवा बाल्टी में करना । तालाब, नल, वर्षा या बिना माप के पानी का त्याग । रास्ते चलते नदी या वर्षा आ जाये तो चलने का आगार अर्थात् जान-बूझ्कर नहाने का त्याग ।
( 14 ) भक्त- दिन में कुल कितनी बार खाना, उसकी मर्यादा करना अर्थात् भोजन, दूध, चाय, नाश्ता, सुपारी, फल-फ्रूट आदि के लिए जितनी बार मुँह चालू करें उसकी गिनती करना । कोई व्यसन (आदत) हो तो छोड़ देना चाहिए या गिन सकें तो गिनना अथवा आगार कर सकते हैं। परीक्षा हेतु चखने का आगार रख सकते हैं एवं भूल का आगार ।
उपरोक्त चौदह नियसों के अतिरिक्त निम्न नियम और सम्मिलित किए गए हैं । सूल पाठ में द्रव्यादि होने से और संख्या का निर्देश नहीं होने से एवं इनकी मर्यादा करना भी दिनचर्या में आवश्यक होने से उपयुक्त ही है-
( 15 ) पृथ्वीकाय- मिट्टी, मुरड़, खड़ी, गेरू, हिंगलु, हड़ताल आदि अपने हाथ से आरम्भ करने की मर्यादा जाति व वजन में अथवा सम्पूर्ण त्याग । खाने में ऊपर से नमक लेने का त्याग या मर्यादा करना। अपने हाथ से नमक का आरम्भ करने की मर्यादा वजन में।
( 16 ) आप् काय- पानी पीना, स्नान, कपड़े धोना, घर के कार्य आदि में अपने हाथ से वापरना, आरम्भ करना, उसकी कुल मर्यादा वजन में। स्पर्श का, इधर-उधर रखने का, डालने का, दूसरों को देने व पिलाने का आगार।
( 17 ) तेउकाय- (क) अपने हाथ से अग्नि जलाने की मर्यादा करना। (ख) बिजली के बटन चालू-बंद करने की गिनती नग व कितनी बार जैसे सुविधा हो। (ग) चूल्हे-चौके-कितनी जगह के उपरान्त की बनी वस्तु का त्याग अर्थात् चूल्हे की गिनती करना । घर पर बनी वस्तु का एक चूल्हा-चौका गिन सकते हैं, चाहे कितने ही चूल्हे-सिगड़ी, स्टोव आदि पर बनी हो। बाहर की खरीदी अथवा भेंट में आई वस्तु का ठीक से मालूम नहीं पड़ने से प्रत्येक वस्तु का एक चूल्हा गिन सकते हैं। दूसरों के घर जहाँ भोजन आदि करें तो उसके घर की वस्तुओं का एक चूल्हा गिनना और खरीदी हुई वस्तुएं ध्यान में आ जाए तो उनका अलग-अलग प्रत्येक वस्तु के हिसाब से चूल्हे गिनना।
( 18 ) वायुकाय- अपने हाथ से हवा करने के साधनों की गिनती करना । बिजली के बटन, पंखे, पुट्ठे, कॉपी, कपड़ा आदि किसी से भी हवा करने का प्रसंग आ जाये, उसे गिनना। खुद कराये उसे भी गिनना, सीधे आ जाये उसका आगार। झूला, पालना आदि खुद करे उसे भी गिनना।
( 19 ) वनस्पतिकाय- हरी लीलोती (वनस्पति), साग-भाजी, फ्रूट आदि का त्याग या मर्यादा उपरान्त त्याग करना ।
( 20 ) रात्रि भोजन- चौविहार या तिविहार का त्याग करना अथवा रात्रि भोजन की मर्यादा, जैसे-रात्रि 10 बजे उपरान्त त्याग। सुबह सूर्योदय तक या नवकारसी या पौरुषी तक का त्याग ।
( 21 ) असि- अपने हाथ से जितने शस्त्र औजार आदि काम में लेवें उनकी मर्यादा नग में। जैसे- सुई, कैंची, पत्ती, चाकू, छुरी आदि। हजायत के साधनों को पुरा एक भी गिन सकते हैं और नाई करे तो उसकी गिनती नहीं रख पाने के कारण आगार रख सकते हैं । बड़े शस्त्र- तलवार, बन्दुक, भाला, बर्छी आदि का त्याग करना अथवा मर्यादा करना ।
( 22 ) मसी- पेन, पेंसिल, होल्डर की मर्यादा करना ।
( 23 ) कृषि वाणिज्य- खेती हो तो उसके संबंध में इतने बीघा उपरान्त का त्याग अथवा सम्पूर्ण त्याग। अन्य व्यापार की मर्यादा करना, जैसे-अमुक व्यापार के अलावा अन्य व्यापार का त्याग, नौकरी हो तो उसके अतिरिक्त सभी व्यापार का त्याग करना । घर- खर्च की मर्यादा करना ।
( 24 ) उपकरण- घड़ी, चश्मा, कांच, कंघा, थाली, कटोरी, गिलास लोटा, थैला, बॉक्स, अलमारी, बाजोट, डेस्क, कंप्यूटर, लेप्टॉप, टेबलेट, मोबाईल, टेलिफोन, टेलीविजन आदि की मर्यादा|
( 25 ) आभूषण- शरीर पर पहनने के सोने-चाँदी के गहने-आशुषण की मर्यादा जाति या नग में करना |
दस प्रत्याख्यान
1. नवकारसी लेने का पाठ
उग्गए सूरे नमोक्कार -सहियं पच्चक्खामि, चउव्विहं पि आहार असणं पाणं खाइमं साइमं।
अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं वोसिरामि।
नवकारसी पारने का पाठ
नमोक्कारसहियं सम्मं काएणं न फासियं न पालियं न तीरियं न किट्टिय॑ न सोहियं न
आराहियं आणाए अणुपालियं न भवइ तस्स मिच्छा मि दुक्कड।
2. पोरसी लेने का पाठ
उग्गए सूरे पोरिसिं पच्चक्खामि, चउव्विहं पि आहार असणं पाणं खाइमं साइमं।
अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पच्छन्नकालेणं, दिसामोहेणं, साहुवयणेणं, सव्वसमाहि-
वत्तियागारेणं, वोसिरामि।
पोरसी पारने का पाठ
पोरिसिं सम्मं काएणं न फासियं न पालियं न तीरियं न किट्टियं न सोहियं न आराहियं
आणाए अणुपालियं न भवइ तस्स मिच्छा मि दुक्कड।
3. पूर्वार्ध लेने का पाठ (दो पोरसी )
उग्गए सूरे पुरिमडढं पच्चक्खामि, चउदव्विहं पि आहार असणं पाणं खाइमं साइमं।
अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पच्छन्नकालेणं, दिसामोहेणं, साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं,
सव्वसमाहि-वत्तियागारेणं वोसिरामि।
पूर्वार्ध पारने का पाठ
पुरिमडढं सम्मं काएणं न फासियं न पालियं न तीरियं न किट्टियं न सोहियं न आराहियं
आणाए अणुपालियं न भवइ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।
4. एकासन लेने का पाठ
एगासणं पच्चक्खामि, तिविहं पि चउव्विहं पि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं।
अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, सागारियागारेणं आउंटण-पसारणेणं, गुरुअब्भुटठाणेणं,
पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं, सव्वसमाहि-वत्तियागारेण वोसिरामि।
(श्रावक वर्ग सागारियागारेण एवं पारिट्ठावणियागारेणं का उच्चारण नहीं करें।)
एकासन पारने का पाठ
एगासणं सम्मं काएणं न फासियं न पालियं न तीरियं न किट्टियं न सोहियं न आराहियं
आणाए अणुपालियं न भवइ तस्स मिच्छा मि दुक्कड।
5. एकलठाणा लेने का पाठ
एगट्ठाणं पच्चक्खामि, चउव्विहं पि आहारं असणं पाणमं खाइमं साइमं।
अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, सागारियागारेणं, गुरुअब्भुटठाणेणं, पारिट्ठावणियागारेण,
महत्तरागारेणं, सव्वसमाहि-वत्तियागारेणं वोसिरामि।
(श्रावक वर्ग सागरियागारेण एवं पारिट्ठावणियागारेणं का उच्चारण नहीं करें। )
एकलठाणा पारने का पाठ
एगट्ठाणं सम्मं काएणं न फासियं न पालियं न तीरियं न किट्टियं न सोहियं न आराह्ियं
आणाए अणुपालियं न भवइ तस्स मिच्छा मि दुक्कड।
6. आयंबिल लेने का पाठ
आयंबिलं पच्चक्खामि, अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, लेवालेवेणं, उक्खित्त-विवेगेणं,
गिहत्थसंसट्ठेणं, पारिट्ठावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहि-वत्तियागारेण
वोसिरामि।
(श्रावक वर्ग लेवालेवेण, उक्खित्त-विवेगेण, गिहत्थसंसट्ठेण. एवं
पारिट्ठावणियागारेणं का उच्चारण नहीं करें।)
आयंबिल पारने का पाठ
आयंबिलं सम्मं काएणं न फासियं न पालियं न तीरियं न किट्टियं न सोहियं न आराहियं
आणाए अणुपालियं न भवइ तस्स मिच्छा मि दुक्कड।
7. उपवास लेने का पाठ
उग्गए सूरे चउत्थभत्तं पच्चक्खामि, तिविहं पि चउव्विहं पि आहार असणं पाणं खाइमं
साइमं। अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पारिट्ठावणियागारेणं, महत्तरागारेण,
सव्वसमाहि-वत्तियागारेणं वोसिरामि।
(श्रावक वर्ग पारिट्ठावणियागारेणं का उच्चारण नहीं करें। )
उपवास पारने का पाठ
चउत्थभत्तं सम्मं काएणं न फासियं न पालियं न तीरियं न किट्टियं न सोहियं न आराहियं
आणाए अणुपालियं न भवइ तस्स मिच्छा मि दुक्कड।
8. दिवस चरिम लेने का पाठ
दिवसचरिमं पच्चक्खामि, चउच्विहें पि. आहार असणं पाणं खाइमं साइमं।
अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं , सव्वसमाहि-वत्तियागारेण वोसिरामि।
दिवस चरिम पारने का पाठ
दिवसचरिमं सम्मं काएणं न फासियं न पालियं न तीरियं न किट्टियं न सोहियं न आराहियं
आणाए अणुपालियं न भवइ तस्स मिच्छा मि दुक्कड।
9. अभिग्रह लेने का पाठ
अभिग्गह पच्चक्खामि, चउब्विहें पि आहार असणं पाणं खाइमं साइमं। अन्नत्थणाभोगेणं,
सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहि-वत्तियागारेणं वोसिरामि।
अभिग्रह पारने का पाठ
अभिग्गहं सम्मं काएणं न फासियं न पालियं न तीरियं न किट्टियं न सोहियं न आराहियं
आणाए अणुपालियं न भवइ तस्स मिच्छा मि दुक्कड।
10. नीवी लेने का पाठ
निव्विगड़यं पच्चक्खामि। अन्नत्थाभोगेणं सहसागारेणं, लेवालेवेणं, गिहत्थ-संसट्ठेण,
उक्खित्तविवेगेणं, पडुच्चमक्खिएणं, पारिट्ठावणियागारेण, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहि-
वत्तियागारेणं वोसिरामि।
(श्रावक वर्ग लेवालेवेण, गिहत्थ-संसट्ठेण, उक्खित्तविवेगेण॑ एवं
पारिट्ठावणियागारेणं का उच्चारण नहीं करें।)
नीवी पारने का पाठ
निव्विगइयं सम्मं काएणं न फासियं न पालियं न तीरियं न किट्टियं न सोहियं न आराहियं
आणाए अणुपालियं न भवइ तस्स मिच्छा मि दुक्कड।
11. दसवां पौषध लेने का पाठ
दसमं पोसहोववासं पच्चक्खामि, चउव्विहं पि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं दव्वओ
सावज्ज जोगं पच्चक्खामि खेत्तओ लोगप्पमाणं कालओ जावं सूरोग्गमं भावओ दुविहं
तिविहेणं न करेमि न कारवेमि मणसा वयसा कायसा तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि
गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि।
दसवां पौषध पारने का पाठ
दसमं पोसहोववासं सम्मं काएणं ण फासियं ण पालियं ण तीरियं ण किट्टियं ण आराहियं
आणाए अणुपालियं ण भवइ तस्स मिच्छा मि दुक्कड।
12. ग्यारहवां पौषध लेने का पाठ
ग्यारहवां पौषध व्रत – असणं पाणं खाइमं साइमं का पच्चक्खाण, अबंभ सेवन का
पच्चक्खाण, अमुक मणि-सुवर्ण का पच्चक्खाण, माला वण्णगविलेवण का पच्चक्खाण,
सत्थ मुसलादिक सावज्ज जोग सेवन का पच्चक्खाण, जाव अहोरत्तं पज्जुवासामि दुविहं
तिविहेणं, न करेमि, न कारवेमि, मणसा, वयसा, कायसा, तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि
गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि।
ग्यारहवां पौषध पारने का पाठ
ग्यारहवें प्रतिपूर्ण पौषध के विषय में जो कोई अतिचार दोष लगा हो तो आलोउं –
1. पौषध में शय्या संथारा न देखा हो या अच्छी तरह से नहीं देखा हो।
2. प्रमार्जन नहीं किया हो या अच्छी तरह से नहीं किया हो।
3. उच्चार पासवण परठने की भूमि अच्छी तरह से न देखी हो या अवधि से अपूर्ण देखी हो।
4. उच्चार पासवण परठने की भूमि पूँजी न हो या अच्छी तरह नहीं पूँजी हो।
5. उपवास युक्त पौषध का सम्यक् प्रकार से पालन न किया हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कड।